नेपाल में विद्रोह को लेकर पूर्व पीएम के पौत्र ने बताई असली वजह
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नेपाल। जेन जी द्वारा शुरू किया गया आंदोलन उग्र रूप ले चुका है। लाखों की संख्या में युवा सड़कों पर उतर आए हैं और सरकार के खिलाफ जमकर प्रदर्शन कर रहे हैं। ये विरोध केवल नारों और रैलियों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि अब हिंसा का रूप ले चुका है।
संसद भवन, राष्ट्रपति आवास और प्रधानमंत्री निवास जैसे महत्वपूर्ण सरकारी ठिकानों पर प्रदर्शनकारियों ने हमला बोला और उनमें आगजनी कर दी। इस गंभीर हालात को देखते हुए नेपाल के राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल, प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और उनकी पूरी कैबिनेट को इस्तीफा देना पड़ा। इस पूरी स्थिति पर नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री के.आई. सिंह के पौत्र यशवंत मिश्रा ने आईएएनएस से बात की है।
जिसमें उन्होंने मौजूदा हालात को एक मिसहैंडल्ड क्राइसिस बताया और सरकार की विफलताओं की ओर इशारा किया। यशवंत मिश्रा के अनुसार नेपाल में लम्बे समय से भ्रष्टाचार चरम पर था। सरकारें लगातार बदल रही थीं, लेकिन आम जनता की समस्याएं जस की तस बनी हुई थीं। देश की बड़ी आबादी युवा है, जिन्हें जेन जी कहा जाता है।
उन्होंने बताया कि नेपाल की कुल जनसंख्या लगभग 3.2 करोड़ है, जिसमें से करीब 40 लाख लोग विदेशों में नौकरी करते हैं। ये लोग अपने परिवार से संपर्क में रहने के लिए सोशल मीडिया जैसे व्हाट्सएप, फेसबुक और इंस्टाग्राम का उपयोग करते हैं। लेकिन जब सरकार ने इन सभी प्लेटफॉर्म्स पर अचानक प्रतिबंध लगा दिया, तो यह फैसला आम जनता के लिए किसी झटके से कम नहीं था।
यशवंत मिश्रा का कहना है कि अब सोशल मीडिया लोगों की रोजमर्रा की ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन चुकी है। अचानक बिना किसी पूर्व सूचना के जब सरकार ने इन प्लेटफॉर्म्स पर बैन लगाया तो स्वाभाविक रूप से लोगों में गुस्सा भड़क उठा। उनका मानना है कि सरकार को ऐसे फैसले लेने से पहले सोच-समझकर और चरणबद्ध तरीके से काम करना चाहिए।
यशवंत मिश्रा का कहना है कि यह विरोध तब और उग्र हो गया जब पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर फायरिंग शुरू कर दी। रबर बुलेट्स या कम घातक उपायों का इस्तेमाल किया जा सकता था, लेकिन पुलिस ने जानलेवा हथियारों का प्रयोग किया।
एक स्कूली बच्चे की संसद भवन के बाहर गोली लगने से मौत हो गई, जो कि अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाएं किसी भी लोकतांत्रिक देश में नहीं होनी चाहिए। यशवंत मिश्रा के अनुसार यह आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से भ्रष्टाचार के खिलाफ शुरू हुआ था, लेकिन सरकार की गलत प्रतिक्रिया ने इसे हिंसक बना दिया।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री चुपचाप अपनी सीट पर बैठे रहे, लेकिन जब हालात नियंत्रण से बाहर हो गए तो उन्हें हेलीकॉप्टर से भागना पड़ा। स्थिति इतनी भयावह हो गई कि सरकार को पुलिस और सेना तैनात करनी पड़ी। प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति भवन और संसद भवन को आग के हवाले कर दिया। यशवंत ने स्पष्ट किया कि हिंसा किसी भी हालत में उचित नहीं ठहराई जा सकती, लेकिन जब लोगों के पास कोई विकल्प नहीं बचता, तो वे आक्रोशित होकर ऐसे कदम उठाते हैं।
उन्होंने सुझाव दिया कि मौजूदा स्थिति को सुधारने के लिए नेपाल में एक अंतरिम केयरटेकर सरकार का गठन किया जाना चाहिए और 2026 में आम चुनाव कराए जाएं। उन्होंने यह भी कहा कि नई सरकार को स्थिरता प्रदान करने के लिए उसमें राइट टू रिकॉल जैसे प्रावधान भी होने चाहिए।
यशवंत मिश्रा ने यह भी कहा कि अब नेपाल वह देश नहीं रहा जो 25 साल पहले था। अब वहां भारी मात्रा में विदेशी निवेश आ रहा है। 200 से ज्यादा बैंक रजिस्टर हैं, अमेरिका और भारत की आईटी कंपनियां वहां व्यापार कर रही हैं, और मल्टीनेशनल कंपनियों के एसेंबली प्लांट्स लग चुके हैं। वहीं केवल पिछले महीने ही 88,000 से अधिक विदेशी पर्यटक नेपाल आए हैं।
इतने अवसर होने के बावजूद लोग विदेश जाने को मजबूर क्यों हैं उनका कहना है कि सरकार की अच्छी नीतियां भी जनता तक नहीं पहुंच पा रही थीं, क्योंकि बीच में ही घोटालेबाज़ सब कुछ खा जा रहे थे। उन्होंने कहा कि नेपाल में जेन जी द्वारा शुरू किया गया आंदोलन सिर्फ एक सोशल मीडिया बैन के खिलाफ नहीं था, बल्कि यह बरसों से चली आ रही भ्रष्ट और अक्षम शासन व्यवस्था के खिलाफ था।
सरकार में हर जगह नेताओं के बच्चे
नेपाल के युवाओं की शिकायत, उनकी नाराजगी सिर्फ बेरोज़गारी तक सीमित नहीं थी। लगातार चले आ रहे भ्रष्टाचार कांड, मंत्रालयों और दूतावासों में नेताओं के बेटे-बेटियों की नियुक्तियां और “नेपो किड्स” का सोशल मीडिया पर ऐशो-आराम का प्रदर्शन युवाओं के गुस्से को और भड़का रहा था।
मानवाधिकार आयोग के पूर्व आयुक्त सुशील प्याकुरेल ने कहा कि “हर जगह सिर्फ नेताओं के रिश्तेदार ही दिखते हैं, आम नागरिक टुकड़ों के लिए तरस रहे हैं।” कई लोगों को ऐसा लगा जैसे अवसर ही एक संकीर्ण अभिजात्य वर्ग के हाथों में चला गया हो। एक छोटा सा डिजाइन स्टूडियो चलाने वाली 24 वर्षीय श्रीजना लिम्बू ने कहा, कि “मेरे दोस्त इसे नरम निर्वासन कहते हैं। या तो आप देश छोड़ दें या फिर यहां बिना किसी सम्मान के रहें। हम शिक्षित, जुड़े हुए और उपेक्षित हैं।”
नेपाली प्रदर्शनकारियों के गुस्से की एक बड़ी वजह ‘नेपो किड्स’ का मामला भी था। शक्तिशाली राजनीतिक हस्तियों के बच्चे अय्याशी और भोग-विलास के फोटो तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर पोस्ट करते थे, उनकी जीवनशैली राजकुमारों जैसी दिखती थी, जबकि आम बच्चा जीवन जीने के लिए संघर्ष कर रहा था। एक प्रदर्शनकारी ने कहा, “नेपो बच्चे इंस्टाग्राम और टिकटॉक पर अपनी जीवनशैली का प्रदर्शन करते हैं, लेकिन कभी यह नहीं बताते कि पैसा कहां से आता है।” यह उस प्रवृत्ति की याद दिलाता है जो ब्लैकआउट से पहले ही जोर पकड़ चुकी थी।
फूटना ही था गुस्सा, होना ही था आंदोलन
विश्लेषकों का मानना है कि इन प्रदर्शनों का फूटना तय था। सोशल मीडिया बैन ने दशकों के असंतोष पर पेट्रोल डालने का काम किया। प्रदर्शनकारियों के बीच सबसे ज्यादा जो नारा गूंज रहा था वो था, ‘ओली चोर गद्दी छोड़।’ इतिहास के छात्र बिबेक अधिकारी ने कहा कि “हमें लोकतंत्र की कहानियां सुनाई गईं, लेकिन हम जी रहे हैं मंत्रियों की राजशाही में। यहां एक उपनाम ही हर दरवाजा खोल देता है।” नेपो किड्स के चमकदार इंस्टाग्राम और टिकटॉक पोस्ट युवाओं को और कचोटते रहे।
नेपाली कांग्रेस के नेता और पूर्व विदेश मंत्री एनपी साउद ने माना कि भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद बड़े मुद्दे हैं। उन्होंने कहा कि “हां, भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद असली मुद्दे हैं। लेकिन इन्हें कानूनी तरीकों और संविधान के जरिए सुलझाया जाना चाहिए।” लेकिन 35 वर्षीय रचना सपकोटा जैसे प्रदर्शनकारियों के लिए, यह मुद्दा कानूनी दायरे से कहीं आगे निकल गया। उन्होंने कहा कि “कल जो हुआ उसे देखने के बाद मेरी इंसानियत ने मुझे घर पर रहने की इजाजत नहीं दी। हम उन लोगों के लिए न्याय चाहते हैं जो मारे गए।”
भारत के पड़ोस में एक के बाद एक गिरती सरकारें
1- दक्षिण एशिया में भारत के करीब करीब तमाम पड़ोसी देश हालिया समय में अस्थिर रहे हैं। अस्थिरता का ये सिलसिला 2021 में अफगानिस्तान में अशरफ गनी की सरकार के पतन के साथ शुरू हुआ था। 15 अगस्त 2021 को अमेरिकी सेना के देश से हटने के बाद, तालिबान ने अफगानिस्तान पर फिर से कब्जा कर लिया। तालिबान लड़ाके काबुल में राष्ट्रपति भवन में घुस गए, उन्होंने एक छोटे से गृहयुद्ध में तत्कालीन अफगान सेना को बुरी तरह से हरा दिया था। राष्ट्रपति अशरफ गनी तालिबान के अपने आवास में दाखिल होने से पहले ही हेलीकॉप्टर से भाग निकले।
2- फिर श्रीलंका… 12 जुलाई, 2022 को, हजारों लोग श्रीलंका की राजधानी कोलंबो में इकट्ठा हो गये, जो राष्ट्रपति भवन और उसके भव्य अंदरूनी हिस्सों को देखने के इरादे से थे, तीन दिन पहले प्रदर्शनकारियों ने उस पर धावा बोल दिया था और राजपक्षे देश छोड़कर भाग गए थे। 2022 में श्रीलंका में महंगाई और ईंधन संकट के बीच जनता राष्ट्रपति भवन में घुस गई और राजपक्षे परिवार को भागना पड़ा। श्रीलंकाई उस विनाशकारी आर्थिक संकट से नाराज थे, जिसने भोजन और ईंधन की भारी कमी पैदा कर दी थी।
3- और फिर बांग्लादेश… 5 अगस्त, 2024 को, प्रधानमंत्री शेख हसीना सरकारी नौकरियों के लिए कोटा सिस्टम के खिलाफ हफ्तों तक चले विरोध प्रदर्शनों के हिंसा में बदल जाने और उनके 15 साल के शासन के लिए एक व्यापक चुनौती बन जाने के बाद देश छोड़कर भाग गईं। हजारों प्रदर्शनकारियों ने उनके आवास और उनकी पार्टी और परिवार से जुड़ी अन्य इमारतों पर धावा बोल दिया।
4 अब, बारी नेपाल की है… नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने भ्रष्टाचार विरोधी प्रदर्शनकारियों द्वारा अनिश्चितकालीन कर्फ्यू का उल्लंघन करने और पुलिस के साथ झड़प के बाद इस्तीफा दे दिया। यह घटना सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के बाद हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों में 19 लोगों की मौत के एक दिन बाद हुई है।
ओली के एक सहयोगी ने बताया कि निवर्तमान प्रधानमंत्री के निजी आवास में आग लगा दी गई है। टीवी पर दिखाई गई तस्वीरों में प्रदर्शनकारियों को परिसर में घुसते और तोड़फोड़ करते, खिड़कियां तोड़ते, और बर्तन, कुर्सियां और अन्य फर्नीचर तोड़ते हुए दिखाया गया है। इसके बाद उन्होंने इमारत में आग लगा दी।
