भीमताल : शिवरात्रि पर पशुपति मन्दिर(शिव मंदिर) में होगा भव्य मेले का आयोजन, भक्तों में अटूट श्रद्धा और विश्वास

Share from here

भीमताल/ओखलकांडा। श्री पशुपति पाशालिंग मन्दिर नैनीताल जिला अन्तर्गत ओखलकांडा ब्लौक की दूरस्थ ग्रामसभा कौडार में स्थित है।

पहले यह स्थान ग्राम सभा पश्यां में आता था। नई ग्राम सभा कौडार  बनने के बाद अब यह स्थान कौडार में आता है।

विशाल शिवलिंग (पाशालिंग) पशुपति मन्दिर सदियों से भक्तों की श्रद्धा और विश्वास का अनूठा स्थान है। माना जाता है कि जो फल द्वादष ज्योतिर्लिंग दर्शन से होता है वही फल इस मन्दिर के दर्शन से मिल जाता है।

हिन्दू धर्म में पुराणों के अनुसार शिवजी जहाँ-जहाँ स्वयं प्रकट हुए उन बारह स्थानों पर स्थित शिवलिंगों को ज्योतिर्लिंगों के रूप में पूजा जाता है।

भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग ये हैं सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारनाथ, भीमाशंकर, विश्वनाथ, त्र्यंबकेश्वर, वैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वर, घुश्मेश्वर (घृष्णेश्वर)।

हिन्दुओं में मान्यता है कि जो मनुष्य प्रतिदिन प्रातः उठकर इन बारह ज्योतिर्लिंगों के नाम का पाठ करता है, उसके सभी प्रकार के पाप छूट जाते हैं और उसको सम्पूर्ण सिद्धियों का फल प्राप्त हो जाता है।

प्रत्येक ज्योतिर्लिंग का एक-एक उपलिंग भी हैं और उसको संपूर्ण सिद्धियों का फल ‘ज्ञानसंहिता’ के 38वें एवं ‘कोटिरुद्रसंहिता’ के प्रथम अध्याय में प्राप्त होता है।

पूर्व में बहुत पिछड़े इलाके में होने, प्रचार तंत्र की कमी और यातायात के साधनों के अभाव में इस स्थान पर बाहर से आने वाले भक्तों का आवागमन कम रहा।

माना जाता है कि चन्द शासन काल में राजा त्रिमुलीचंद यहां अपने साथ वासुदेव और केवलानंद गड़कोटी को चम्पावत से लाया था और इन्हें यहां पशुपति मंदिर की पूजा अर्चना के लिए रखा। इनको यह भूमि दानस्वरूप दी गई थी।

एक कोने में होने के कारण इन्हें यहां कुड़ै कहा जाने लगा। अब कुड़ाई कहे जाते हैं। राजा त्रिमुलीचन्द शिवजी का परम भक्त था। ऐतिहासिकप्रमाणों के अनुसार विक्रम संवत् के कुछ सहस्राब्दी पूर्ण संपूर्ण धरती पर उल्कापात का अधिक प्रकोप हुआ।

आदिमानव को यह रूद्र (शिव) का आविर्भाव दिखा। जहां-जहां ये पिंड गिरे, वहां-वहां इन पवित्र पिंडों की सुरक्षा के लिए मन्दिर बना दिए गए। इस तरह धरती पर हजारों शिव मंदिरों का निर्माण हो गया।

उनमें से प्रमुख थे 108 ज्योतिर्लिंग, लेकिन अब केवल 12 ही बचे हैं। शिव पुराण के अनुसार उस समय आकाश से ज्योति पिंड पृथ्वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेक उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। यह बहुत ही प्राचीन पवित्र मंदिर है।

इसका उल्लेख ऋग्वेद के नासदीय सूक्त तथा बराह पुराण में भी आता है। जब ऋषि मार्कण्डेय जी के प्रार्थना पर विष्णु भगवान ने प्रलय का दृश्य दिखाया। हिमांचल से विध्यांचल तक सब जल मग्न हो गया था।

तब मार्कण्डेय के आश्रम से ऋषियों ने पाशालिंग की पूजा अर्चना की थी और फल प्राप्त किया था। जो भी श्रद्धालु मन्दिर में पूजा अर्चना करते हैं उन्हें भी तुरन्त फल मिलता है, ऐसी मान्यता है।

ऐसा भी उल्लेख हे कि पशुपति की पूजा करने से मनुष्य को पशु योनि में नहीं जाना पड़ता। इसी पाशालिंग के नीचे पार्वती शिला भी है। वहा पानी का श्रोत (नौला) भी है। इसको हंतरी गंगा के नाम से जाना जाता है।

इसका पानी गंगाजल की तरह खराब नहीं होता है। लोग यहाँ विशेष पर्वो में स्नान करने के लिए आते हैं। इसके आस-पास कई बड़ी शिलाएं भी मौजूद हैं।

मान्यता है कि ये शिव के गण हैं, कहा जाता है कि शिवजी की बारात ने यहाँ पर रात्रि विश्राम किया था। मंदिर के साथ भैरव मन्दिर भी है।

शिव मन्दिर में उत्तर में कुछ दूरी पर राजा कोट नामक स्थान है। वहां पर खंडहर के रूप में दीवार अभी भी मौजूद है तथा डिजाइन में कटे पत्थर भी मौजूद हैं। ऐसा लगता है कि चन्द शासन काल में राजा यहां पर निवास करता होगा।

यहां महाशिवरात्रि पर मेला लगता है। श्रद्धालु दर्शन करते हैं और जल चढ़ाते हैं। मन्दिर में हर पर्व पर पूजा अर्चना होती है।

भागवत कथा का आयोजन भी होता रहता है। श्री मंगतपुरी (भगवन बाबा) जी भी यहां पर आयोजन कराते रहते हैं।


Share from here
See also  अल्मोड़ा में सौर ऊर्जा कंपनियों पर पेड़ों की अवैध कटाई का आरोप
error: Content is protected !!