अल्मोड़ा : वन पंचायत क्षेत्रीय परामर्श दात्री समिति ब्लाक चौखुटिया ने अधिसूचित वन पंचायतों की स्वायत्तता निर्वाचित सरपंचगण के संवैधानिक अधिकारों को लेकर मुख्यमंत्री धामी को लिखा पत्र

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अल्मोड़ा‌। उत्तराखण्ड की अधिसूचित वन पंचायतों की स्वायत्तता निर्वाचित सरपंचगण के संवैधानिक अधिकारों एवं पारंपरिक ग्राम हितों की पुनर्स्थापना हेतु तात्कालिक उच्चस्तरीय नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता के सम्बन्ध में।

 उत्तराखण्ड राज्य के विभिन्न जनपदों से निर्वाचित वन पंचायत सरपंचगण यह प्रतिनिधित्व अत्यंत गंभीरता जिम्मेदारी और व्यापक जनहित के भाव से प्रस्तुत कर रहे हैं।

यह कोई विरोध या आरोप नहीं बल्कि प्रदेश की लोकतांत्रिक आत्माए पर्यावरणीय उत्तरदायित्व और ग्राम स्वराज की मूल भावना को संरक्षित रखने की एक प्रतिबद्ध और सकारात्मक अपील है।

राज्य की हजारों बन पंचायतें आज एक संस्थागत संकट से जूझ रही हैं जहाँ उनके संबैधानिक अधिकार प्रशासनिक स्वायत्तता वित्तीय भागीदारी और पारंपरिक भूमिकाओं को क्रमशः समाप्त किया जा रहा है।

वन पंचायतें केवल बनों की देखरेख की इकाइयाँ नहीं अपितु वे उत्तराखण्ड की पारिस्थितिकी सांस्कृतिक विरासत ग्रामीण आजीविका और संवैधानिक लोकतंत्र का मूल तत्व हैं।

संयुक्त सरपंचों की प्रमुख मांगें

1. वन पंचायतों को संवैधानिक दर्जा प्रदान करते हुए उन्हें पूर्ण स्वायत्तता का अधिकार दिया जाए तथा ग्राम वन ग्राम प्रधान समितियों की भूमिका पुनः समाप्त की जाए।

2. यह उचित और आवश्यक है कि निर्वाचित प्रतिनिधियों की भाँती सरपंचों को मानदेय प्रदान किया जाए ताकी उनकी जिम्मेदारीयो और योगदान का समुचित सम्मान हो सके वनाग्रि सुरक्षा में इनकी मुख्य भूमिका होती है।

3. प्रदेश वन पंचायत सलाहकार परिषद में बन पंचायत सरपंचों को ही अध्यक्ष बनाया जाए ताकि स्थानीय अनुभव और निर्णय प्रक्रियाओं की प्रभावशाली भागीदारी सुनिश्चित हो सके।

4. वन विभाग प्रति वर्ष सुरक्षा व्यवस्था से लेकर अन्य मदों में अरबों रूपये व्यय करता है।

उसी अनुपात में क्षैतिजरूप से बन पंचायतों को भी धन राशि मिले ताकि वन पंचायतें सक्षम हो सके।

5. सरपंच एवं पंचों को समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए जिससे जागरूकता के साथ-साथ सभी योजनाओं का लाभ ग्राम स्तर तक पहुँच सके।

6. लीसा लगाना, लीसा टिपान, रायेंल्टी भुगतान, गिरे पैड़ सुखे पैड़ों का समयबद्ध निस्तारण सरलीकृत किया जाय।

7.बी.डी.सी बैठक में बन विभागीय अधिकारी की भाँती क्षेत्रीय परामर्श दात्री अध्यक्ष को भी बैठक में सम्मलित किया जाय।

8. वर्तमान नियमावली अनुसार प्रांतीय परामर्श दात्री अध्यक्ष प्रभाव में नहीं है। इस लिए यदि कोई अध्यक्ष पत्रावली करता है तो उन पर शीघ्र कानुनी कार्यवाही होनी चाहिए।

अतः बन पंचायतों की संवैधानिक स्थिति की संरक्षण देना अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि इस पत्र में वर्णित बिंदुओं पर त्वरित एवं गंभीर विचार नहीं किया गया तो इसका सामाजिक आर्थिक और पर्यावरणीय दृष्टि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

इस मामले में राज्यव्यापी स्थिति में व्यापक जनजन आंदोलन की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

जिसमें बन पंचायतों के प्रतिनिधियों एवं जनसमुदाय की व्यापक सहभागिता होगी। हमें आशा है कि उत्तराखण्ड सरकार एवं प्रशासन द्वारा इस मामले में त्वरित और न्यायसंगत कार्यवाही सुनिश्चित की जाएगी।

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