केंद्र की मोदी सरकार अधिवक्ता अधिनियम 1961 में संशोधन कर नया कानून लाने की तैयारी कर रही है. सरकार ने इसके लिए अधिवक्ता संशोधन बिल 2025 का ड्राफ्ट तैयार कर लिया है।
सरकार के इस कदम से आक्रोशित अधिवक्ताओं ने उत्तराखंड के विभिन्न हिस्सों में सांकेतिक प्रदर्शन कर कार्य बहिष्कार किया।
अधिवक्ताओं द्वारा किये गए कार्य बहिष्कार के कारण वादकारियों को निराश होकर कोर्ट से चल लौटना पड़ा।
अधिवक्ता संशोधन बिल 2025 का उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जनपद में जिला बार एसोसिएशन के पैनल तले अधिवक्ताओं ने सांकेतिक प्रदर्शन करते हुए दूसरे दिन भी कार्य बहिष्कार किया।
प्रदर्शन करने वाले अधिवक्ताओं ने केंद्र सरकार से अपील करते हुए कहा कि केंद्र सरकार अधिवक्ता अधिनियम 1961 में संशोधन करने की तैयारी कर रही है।
जिसे किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, क्योंकि यह संशोधन वकीलों के हितों पर सीधे प्रहार करने वाला संशोधन साबित होगा।
युवा अधिवक्ता अनिल यादव ने कहा कि नए अधिवक्ता कई साल प्रेक्टिस करने के बाद कोई केस लेते हैं, अगर वो अपना केस किसी कारण से हार जाएंगे।
तो हमारे खिलाफ हमारा क्लाइंट अगर कोई शिकायत कर देता है तो वकील पर ही जांच बैठ जाएंगी. उन्होंने कहा कि इस संशोधन के बाद से नए अधिवक्ता केस लेने से बचेंगे, और आने वाले समय में युवाओं का वकालत से मोहभंग भी हो सकता है।
हमारी सरकार से अपील है कि कोई भी निर्णय लेने से पहले वकीलों के हितों का भी ध्यान रखें।
वहीं दूसरी ओर कुछ केसों को लड़ रहे वादकारियों ने कहा कि सरकार बिल्कुल सही कदम उठा रही है, क्योंकि कई अधिवक्ता रूपयों के लालच में दूसरे पक्ष से मिलकर या केसों को कमजोर कर जानबूझकर केस को हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट पहुंचाते हैं।
जिससे केस लड़ रहें लोगों को मानसिक परेशानी व धन की बर्बादी का सामना करना पड़ता है।
अधिवक्ताओं की समान फीस नहीं होने के कारण वादकारियों से मनमानी धनराशि वसूलते हैं।
महंगी फीस देने के बावजूद भी अधिवक्तागण लालच में काम नहीं करते व दूसरे पक्ष से मिलकर और कोर्ट कचहरी में कर्मचारियों से मिली भगत कर वादकारी को नुकसान पहुंचाते हैं।
केसों का सामना कर रहे वादकारियों ने बताया कि न्यायपालिका में सुधार की जरूरत है और हर किसी की जवाब देही तय होनी चाहिए।