हल्द्वानी। बसन्त पञ्चमी सरस्वती पूजन का दिवस है, सरस्वती विद्या की देवी है, विद्या जीवन के ऋणों से उऋण होने का मार्ग प्रशस्त करती है,प्रत्येक मनुष्य तीन ऋणों से ऋणी है जिनसे उऋण होना ही जीवन का उद्देश्य है।
ये विचार आर्यसमाज हल्द्वानी में बसन्त पञ्चमी के अवसर पर आयोजित सामूहिक यज्ञोपवीत संस्कार के ब्रह्मा के रूप में डॉ विनय विद्यालंकार ने व्यक्त किए।
आर्यसमाज हल्द्वानी में आज सामूहिक यज्ञोपवीत संस्कार का आयोजन किया गया था, जिसमें रानीखेत से बालक विवेक पपनै, हल्द्वानी से गौरव जोशी, हल्द्वानी के ही यशराज बिष्ट का उपनयन संस्कार ( जनेऊ) किया गया, साथ ही बसन्त पञ्चमी के पर्व की आहुतियां दी गईं एवं 1734 में सनातन धर्म के लिए बलिदान हुए बाल हकीकत राय का बलिदान दिवस भी मनाया गया।
डॉ विद्यालंकार ने बाल हकीक़त राय की सनातन धर्म के प्रति निष्ठा पर विचार व्यक्त किए और कहा कि 14 वर्ष का बालक बाल हकीकत राय केवल इसलिए बलिदान कर दिया गया था क्योंकि उसने हिंदू धर्म की देवी नवदुर्गा का अपमान नहीं सहा था और उसका प्रतिकार किया था।
इस बात के लिए लाहौर के नवाब ने इस्लामी कट्टरपन्थियों की मांग उसे सजा दी थी या तो वह इस्लाम स्वीकार करें नहीं तो उसे संगसार कर दिया जाए।
14 वर्ष के बालक ने सनातन धर्म में निष्ठा दिखाते हुए संगसार की सजा स्वीकार की उस बालक को बसंत पंचमी के दिन ही सन 1734 ईस्वी में आधा जमीन में गाढ़ कर हजारों लोगों ने पत्थर बरसाकर संगसार किया और अंत में उसका सर काट दिया गया।
आज हमें ऐसे वीर बलिदानियों का स्मरण करना चाहिए जिससे हम सनातन की रक्षा के लिए स्वयं को आत्मशक्ति से युक्त कर सकें। सनातन किसी को ईर्ष्या व द्वेष नहीं सिखाता। त्रेतायुग में धर्म की रक्षा के लिए श्री राम ने रावण के साथ युद्ध किया।
द्वापर में योगेश्वर कृष्ण ने अर्जुन का सारथी बनकर धर्म के लिए महाभारत युद्ध किया। कलियुग में भी अनेक सनातनधर्मियों ने धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दिए। धर्म प्रेम है, धर्म सद्भाव है, धर्म कर्तव्य पालन है, यही सनातन धर्म सिखाता है।
इस अवसर पर आर्य समाज में अनेक नगर वासियों ने भाग लिया। आर्य समाज के धर्माचार्य विनोद आर्य, संरक्षक पी एल आर्य, मंत्री हरीश चन्द्र पन्त, वरिष्ठ पत्रकार अरविन्द मलिक, अनुजकान्त खंडेलवाल, ललित जोशी, रणजीत यादव, कृष्णा आर्या, कमलेश भारद्वाज, राजकुमार राजौरिया, ढालकुमारी शर्मा, सोबरन शर्मा एवं जनेऊ संस्कार वाले बालकों के माता-पिता व पारिवारिक जनों ने श्रद्धा के साथ आहुतियां प्रदान कीं।
यज्ञ एवं जनेऊ संस्कार की समस्त व्यवस्था आचार्य सन्तोष भट्ट ने की।