उत्तराखंड में शराब के ठेके की रक्षा कर रही पुलिस, फिर छिड़ा विवाद; जानें पूरा मामला…

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उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता है, जहां गंगा की पवित्र धारा और ऋषि-मुनियों की तपोभूमि से दुनिया भर के श्रद्धालु जुड़े हुए हैं. लेकिन अब यही देवभूमि एक नए विवाद का केंद्र बन चुकी है।

उत्तराखंड के तीर्थ स्थल ऋषिकेश में शराब के ठेके को लेकर भारी विरोध और राजनीति का मंजर देखने को मिल रहा है. क्या यह पवित्र भूमि पर शराब की बिक्री को लेकर आस्था संकट में है? जानें पूरी कहानी।

ऋषिकेश, जो योग और आध्यात्मिकता का केंद्र माना जाता है, अब एक शराब की दुकान के कारण विवादों में घिरा हुआ है. मुनिकीरेती के ढालवाला इलाके में स्थित यह शराब का ठेका साल 2018 में खोलने के बाद से ही विरोध का सामना कर रहा था।

हालांकि, अब यह विवाद और भी गहरा गया है खासकर एक हत्या के मामले के बाद. ये हत्या इस शराब के ठेके के पास हुई, जिससे फिर से स्थानीय लोगों और विभिन्न संगठनों ने विरोध करना शुरू कर दिया है।

पिछले हफ्ते, इसी शराब की दुकान के पास एक व्यक्ति की हत्या हो गई, जिससे विवाद और बढ़ गया. हत्या के बाद स्थानीय लोग फिर से सक्रिय हो गए और ठेके को बंद करने की मांग को लेकर अनशन शुरू कर दिया।

आंदोलनकारियों का कहना है कि शराब के ठेके से धार्मिक और आध्यात्मिक नगरी की मर्यादा को ठेस पहुंच रही है. आंदोलन के दौरान कुछ लोग भी बीमार पड़ गए और उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा. इसके बावजूद आंदोलन जारी है और अब यह मुद्दा राजनीतिक रंग भी लेता दिख रहा है।

पूर्व विधायक ओम गोपाल रावत ने इस आंदोलन को समर्थन देते हुए कहा कि सरकार जनता की भावना का सम्मान नहीं कर रही है।

उन्होंने यह भी कहा कि देवभूमि में शराब बेचने से बड़ा पाप और क्या हो सकता है? उनके बयान से यह स्पष्ट है कि यह विवाद अब सिर्फ एक ठेके का नहीं, बल्कि पूरी देवभूमि की आस्था का मुद्दा बन चुका है।

वहीं, आबकारी विभाग ने इस मामले पर अपनी स्थिति स्पष्ट की है. विभाग का कहना है कि यह ठेका सरकारी राजस्व का महत्वपूर्ण स्रोत है और शराब के खिलाफ चल रहे आंदोलनों से राज्य को भारी नुकसान हो रहा है. विभाग का कहना है कि विरोध करने वाले लोग इसे राजनीतिक मुद्दा बना रहे हैं और इस कारण राज्य को लाखों का राजस्व नुकसान हो रहा है।

ऋषिकेश जैसे पवित्र स्थल पर शराब की दुकान का खुलना सवाल उठाता है कि क्या यह जगह अब धार्मिक और आध्यात्मिक से ज्यादा वाणिज्यिक बनती जा रही है? क्या यहां की आस्था और शांति को शराब जैसी चीज से नुकसान हो रहा है? यह केवल एक ठेके का मामला नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड की पहचान और उसकी पवित्रता से जुड़ा सवाल है।

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